...

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ठंडे रिश्ते
चूल्हे की ठंडी आग की तरह
ठंडे पड़े हुए थे कुछ रिश्ते
कहीं शायद कुछ आंच सी दिखी
तो फूंक दिया , हवा दी
कोशिश की फिर से सुलगाने की
रिश्तों में गर्माहट लाने की
पर बुझते हुए अंगारों की चिंगारी
मुझ पर ही आ गिरी,
और मिले छाले दर्द भरे
भस्म हो गई उस में बची उम्मीद भी
बस धुआं था उड़ती राख का
कुछ गम सिसकते, कुछ दर्द रिसते
आंखों में कुछ जलन कुछ नमी सी थी
जो बहा ले गई उस बची राख को भी
अब बस थे निशान गहरे, कुछ हल्के
अनुभव और सबक याद दिलाने के लिए

© agypsysoul