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अपनी रहमत बख्श
अपनी रहमत बख्श:-

*जिन्दगी बख्शी है,*
*तो जीने का सलीका भी बख्श।*
*ज़ुबान बख्शी है मेरे मालिक,*
*तो सच्चे अल्फ़ाज़ भी बख्श।*
*सभी के अन्दर तेरी ज्योत दिखे,*
*ऐसी तू मुझे नज़र भी बख्श।*
*किसी का दिल न दुखे मेरी वजह से,*
*ऐसा अहसास भी तू मुझे बख्श।*
*आपके चरणकमल में मैं लगी रहूँ,*
*हे दाता ऐसा ध्यान भी बख्श।*
*रिश्ते जो बनाये मेरे मालिक,*
*उनमें अटूट प्यार तू भर।*
*ज़िम्मेदारियाँ बख्शी हैं मेरे पालनहार,*
*तो उनको निभाने की समझ भी बख्श।*
*बुद्धि बख्शी है मेरे मालिक,*
*तो विवेक बख्श।*
*एक और अहसान कर दे,*
*जो कुछ है, वो सब तेरा है,*
*तो फिर इस मेरी "मैं" को भी बख्श।*
(डॉ.श्वेता सिंह,पानीपत)