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मिलना अब हमारे मुकद्दर में नही!*(my real story)
मिलना अब हमारे मुक़द्दर में नही!
शायद कुदरत को यही मंजूर था,
की वो मेरी तरफ न बढ़ा, और मैंने कोशिश भी न की !
शायद वो भी थोडा मजबूर था,
रिश्ते टूटे तो हमारी वजह से !
गलतियाँ उसकी थी, तो मुझे भी थोडा गुरूर था ,
सौ बातों से, बातें एक बात में बदल गयी !
थोडा उसका तो थोडा मेरा भी कसूर था ,
वक़्त नहीं था पास उसके तो !
कही न कही, मैं भी थोड़ी मगरूर थी ,
अब अपनी मंज़िल की ओर चल दिए है !
शायद खुदा का यही दस्तूर था।


© Queenforever2..(🌍❤1710)