...

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दर्द अपना सा लगता है
एक सुकून भरी जीवन के तलाश में
सुबह से शाम तक
भागदौड जारी है यहाँ,
बडे बडे मकान खरीद लिये
लम्बी गाड़ीयाँ भी लेलि,
मगर घर का ये सुनापन जैसे
काटने को दौडता और
लम्बी गाड़ी में भी जैसे दम है घुटता,
पैसों की कमी थी पहले
मगर कमी है अब अपनों की और अपनेपन की,
भीड तो हर तरफ है,
फिर भी ना जाने क्यों तन्हा सा है
हर इन्सान यहाँ,
भटक रहे हम सुकून के तलाश में,
जाने बह सुकून का आशियाना है कहाँ!
ना सुकून है, ना कोई दोस्त
ना कोई अपना है,
हर नया दिन
एक नया दर्द
मन में आ ही जाता है,
अब तो बस
ये दर्द ही अपना सा लगता है।
© RanjitaLucky26

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