...

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ऐसा कभी हुआ है ।
ऐसा कभी हुआ है ,
बंद आंखों के पीछे कभी चाँद पर फूल खिला है।

हाथ थाम कर सपनों का,
सच के पीछे मीठा एहसास मिला है।

बीत गई उम्र तन की,
पर उम्मीद को रोज नया एक रूख़ मिला है।

जाने दो अब रहने दो सच और झूठ को,
भावों ने रस को पीकर शब्दों को रूप दिया है।

मृत्यु भी उभय रेखा पर थमकर,
जीवन को क्षण का दान दिया है।

कल्पना नहीं सच है यह तो,
अपने-दूजे पन को मिटाकर,मिलकर एक होने का एहसास दिया है।

ऐसा कभी हुआ है,
बंद आंखों के पीछे कभी चाँद पर फूल खिला है।

@kamal.muni