प्रश्न
अरमानों में झुलसे पतंगे की तरह हर रोज आंधियों ने उड़ाया है
अरमानों की ख्वाइश ने पल पल कितना उलझाया है
हर ओर अंधेरा घना घना हर ओर जलानी है बाती
बिन डगर दिखे किस ठौर चले यह प्रश्न सुलझ न पाया है
अरमानों की ख्वाइश ने पल पल कितना उलझाया है
हर ओर अंधेरा घना घना हर ओर जलानी है बाती
बिन डगर दिखे किस ठौर चले यह प्रश्न सुलझ न पाया है