...

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आज वो मर ही गई
आज ,वो मर ही गई
माहौल कुछ गमगीन सा था
थी खड़ी मैं भी वहीं पर
बुढ़ापे और अकेलेपन से
आज छूट ही गई
आज, वो मर ही गई......
कुछ उस पर ....
अब अपना हक जमा रहे थे,
दिखाने को,
घड़ियाली आंसू बहा रहे थे ,
पर मन में खुशियों के दिए जला रहे थे ,
आज वो मर ही गई.....

आंखों में एक सूनापन लिए,
हर पल तरसती थी....
किसी के साथ को
कहने को ....
सब अपने ही थे
खून सबकी रगों में ,
उसी का ही था
पर अपनेपन की प्यास लिए
आज वो मर ही गई ...

वह सोचती थी
बहरी हूं ,या कोई बुलाता ही नहीं
जरा सी आहट पर ...
बिना वजह खुश हो लेती थी
कुछ नये सपने संजो लेती थी
आज वो मर ही गई .....

आज उठाला ,फिर तीजा ,
और फिर तेरहवीं ....
जीमेंगे पंडित और सारी बिरादरी
पर इज्जत की रोटी के
दो टुकड़ों को तरसती ...
आज वह मर ही गई ....

घर के लोगों के लिए
जिंदा ही कहां थी
आज सच ....में
वो मर ही गई.....,,
वो मर ही गई.......
🙏🙏🙏🙏
                         नीरा गोयल