...

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समय खरीदेगा
समय ख़रीदेगा सब कुछ,
बिकता, जो न बिकता है।
देखने वालों देखते जाओ,
आगे क्या-क्या दिखता है।

बदल गए हैं,  शोर, मौन में,
मौन भी कितना चीखता है,
मन के भीतर झाँकों तुम भी,
तन  से  ही  क्या दिखता है।

कमी लगी है, हर पल में ही,
आजीवन कितना भरता है।
अपना लगता कम सदा ही,
औरों का  ज्यादा लगता है।

खालीपन के साथ ही जिसको,
जीवन     पूरा    लगता     है,
इस क्षण में भी काल खड़ा हो,
क्या    वो  उससे   डरता   है।

कोई   तरता   सात  समंदर,
सात    आसमाँ   चढ़ता  है।
पल में धूल हो जाता, कोई
तट  पर  आकर  डूबता  है।

पर्दे के नीचे है कुछ, और
ऊपर से कुछ  दिखता है।
इन पर्दों को गिरा भी दें पर,
ये, दर्जी कौन सिलता है।

काम पड़ा है मुझ मानव को,
ये, तब मंदिर में रुकता है।
तेरे  आगे सिर  झुके क्यों ,
जब धन के आगे झुकता है।

घनघोर समय आएगा जब,
देखें  क्या-क्या बचता  है।
उससे बचने को ये मानव,
और भी क्या-क्या रचता है।

झूठ की माया देख अनोखी,
कितना   सुंदर   लगता   है।
सच तो सबको करता नंगा,
और  सभी  को  चुभता  है।

समय ख़रीदेगा सब कुछ,
बिकता, जो न बिकता है।
देखने वालों देखते जाओ,
आगे क्या-क्या दिखता है। 
@poetryhub4u

© Poetryhub4u