...

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ग़ज़ल
कर लेगा तेरी रूह से भी प्यार कोई और
मिल जाएगा मुझे भी तो ग़म-ख़्वार कोई और

वो और है जो रखता है ख़ंजर की नौक पर
करता है मेरे खूँ को चमकदार कोई और

अब तक तुम्हारें साथ शनासा था जाने कौन
रहता है मेरे जिस्म में किरदार कोई और

जिस-जिस से भी मिला हूँ यही बोलता हूँ मैं
है मेरी रूह-ओ-जिस्म का हक़दार कोई और

अब तंग आ चुका हूँ मैं ख़ुद की तलाश से
ले आइये मेरे लिए फ़नकार कोई और

ख़ुद से नहीं खुलूँगा बड़ा सख़्त-जाँ हूँ मैं
लाना पड़ेगा आपको औज़ार कोई और

बिखरा हूँ टूट फूट के साहिल की गोद में
खींचे है मेरी नाव के पतवार कोई और !
© हर्ष