अज़ल से ज़िंदगी मुश्किलों का रास्ता रहा
अज़ल से ज़िंदगी मुश्किलों का रास्ता रहा
हिज़्र कहीं तो कहीं रफाक़त का वास्ता रहा
हर बार हर कोई यहाँ इज़ा में मुब्तला रहा
कहीं ताबीर तो कहीं ज़ब्त का मसला रहा
तालीम का हर एक दौर में बड़ा शोर सा रहा
इमारत जहाँ बनी थी वहाँ शिक्षक नहीं रहा
'बेटी पढ़ाओ देश बढ़ाओ' का...
हिज़्र कहीं तो कहीं रफाक़त का वास्ता रहा
हर बार हर कोई यहाँ इज़ा में मुब्तला रहा
कहीं ताबीर तो कहीं ज़ब्त का मसला रहा
तालीम का हर एक दौर में बड़ा शोर सा रहा
इमारत जहाँ बनी थी वहाँ शिक्षक नहीं रहा
'बेटी पढ़ाओ देश बढ़ाओ' का...