बदलती है नफ़रत भी प्रेम में
माहौल कुछ ठीक नहीं ।
ज़हर घुला है ,हवाओं में ।।
अपनी धुन में जीते चलों ।
यकीं रखकर वफ़ाओं में ।।
आँख मूँदकर चलना नहीं ।
बिखरे हैं काँटे ,बहुत राहों में ।।
आस्तीन में छिपे हैं ,सर्प बहु ।
झटककर देखना भी बाहों में ।।
बदलती हैं नफ़रत भी प्रेम में ।
बसा लो अरि को ग़र चाहो में ।।
- ©MaheshKumar Sharma
21/4/2023
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