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अपराध्
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता कई प्रहार करता है
आधीनता अपराध की स्वीकार करता है
खुद को छोटा सा समझ किसी का
विस्तार करता है
विस्तार भी ऐसा कि सब को पैर से रौंदे
तोड़ता वो सब चले जो बने हैं घरोंदे
इस तरह की मूक स्वीकृति
जग सिहरता है
रोक लग जाती है जग में
जो निखरता है
© Anil Mishra
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता कई प्रहार करता है
आधीनता अपराध की स्वीकार करता है
खुद को छोटा सा समझ किसी का
विस्तार करता है
विस्तार भी ऐसा कि सब को पैर से रौंदे
तोड़ता वो सब चले जो बने हैं घरोंदे
इस तरह की मूक स्वीकृति
जग सिहरता है
रोक लग जाती है जग में
जो निखरता है
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