...

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मसला नया है उलझनो का
कुछ उलझने उलझा रही है मुझे
ऐतराज न हो तो बता दूं....
जरूरी तो नही है सुनना
पर अगर तुम चाहो तो इश्क़ जता दूं...
खैर छोड़ो तुम फिर वही उम्र का पहरा लगाओगे....
या फिर सुन ही लो
वक्त कितना ही आगे क्यों न निकल जाए
तुम मुझे और मेरे इश्क़ को वही ठहरा पाओगे....
अब तुम्हे मेरे पास आना है या बेशक बेहतरीन के पास जाना है
ये तुम्हारी मर्जी है....
पर मिल जाएगा तुम्हे उसमे मेरे इश्क़ से बेहतर इश्क़
तो हो सकता है तुम्हारा ये सोचना फ़र्ज़ी है...
तो चाहो तो मेरे इश्क़ पे ऐतबार कर लो....
या ढूंढो इस जहां में मुझसे बेहतर
जो मिल जाये तो बिना सोचे उससे प्यार कर लो....
जो न मिला बेहतर तो लौट आना....
उसके साथ एक भी लम्हा मत बिताना....
पर अगर लौट के आना है तो जाना ही क्यों है.....
जो समझ गए मुझे तो किसी ओर को फिर आजमाना ही क्यों है ....
अब देखो मैं इन उलझनों में उलझी हूँ
और तुम्हे भी उलझा दिया....
पर अल्फाजो ने कागज पर उतरते ही
इस मसले को भी सुलझा दिया....


© @nji