नाकाम कोशिश...!
कितनी बार बचाया हमने
गीतों की बोली लगने से
पर पीड़ा के चौराहे पर
हर कविता नीलाम हुई,
खोए थे सुंदर सपनों में
कब हुई रात पता न चला
जिसके रहने से रहती थी रौनक
कब हुई वीरान पता न चला
खुशबू पीकर तुम महके
रातरानी मेरे घर की बदनाम हो गई,
सूर्यमुखी सी लगी तुम
अभिभूत होकर किया नमस्कार
मुस्कान फेंकी मेरी ओर
बदल गए सारे आयाम
और कुछ तो हुआ नहीं
गोपनीयता बस आम हो गई,
कुछ ऐसा बस गया मन में
कि, हर सुंदरता मंजूर करूं
अपनी सांसे दे दे कर
सबका निस्वासन दूर करूं
अब जीने की सारी कोशिश
जानें क्यूं नाकाम हुई...
पर,पीड़ा के चौराहे पर
हर कविता नीलाम हुई....!
गीतों की बोली लगने से
पर पीड़ा के चौराहे पर
हर कविता नीलाम हुई,
खोए थे सुंदर सपनों में
कब हुई रात पता न चला
जिसके रहने से रहती थी रौनक
कब हुई वीरान पता न चला
खुशबू पीकर तुम महके
रातरानी मेरे घर की बदनाम हो गई,
सूर्यमुखी सी लगी तुम
अभिभूत होकर किया नमस्कार
मुस्कान फेंकी मेरी ओर
बदल गए सारे आयाम
और कुछ तो हुआ नहीं
गोपनीयता बस आम हो गई,
कुछ ऐसा बस गया मन में
कि, हर सुंदरता मंजूर करूं
अपनी सांसे दे दे कर
सबका निस्वासन दूर करूं
अब जीने की सारी कोशिश
जानें क्यूं नाकाम हुई...
पर,पीड़ा के चौराहे पर
हर कविता नीलाम हुई....!