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कुछ मेरी माँ के लिए भी...
कुछ ख़ास नही पर एक कविता मेरी माँ के लिए.....

मुझे जिसने जन्म दिया,
जिसने मेरे खातिर इतना दर्द सहा,
वो सामने आ गई निडर होके,
जब- जब किसी ने मुझसे गलत कहा,
आँचल से मेरा मुँह पूछा,
जिसने खुद को रात भर मेरे लिए जगाया,
और मुझे चैन से सुलाया,
जिसने अपने हाथों से नेहलाया,
जिसने अपने हाथों से खाना खिलाया,
जिसने मुझे परियों के जैसा सुंदर सजाया,
जिसने मुझे चलना सिखाया,
जब भी मैं बीमार होती,
मेरे लिए डॉक्टर बन जाती,
गलती होने पर मुझे डाँट भी लगाई,
जब- जब मैं उदास होती,
मुझे बच्चों की तरह मनाया,
मेरे लिए छप्पन भोग भी बनाया,
जिसके हाथों में है ऐसा जादू,
जिसके सामने विदेशी स्वाद भी बन जाए बेकाबू,
सही समय आने पर.....
स्कूल और विद्या का मतलब समझाया,
जब- जब मैं कमज़ोर बनी,
मेरी माँ बनी मेरा सहारा,
मुझे सही- गलत का मतलब सिखाया,
मुझे दुनिया का मतलब बताया,
मुझे ज़माने के बारे में सिखाया,
मेरी माँ ने मेरे लिए,
बाप बनने का भी फ़र्ज़ निभाया.......

© Glory of Epistle