...

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एक कहानी ऐसी हुई
एक कहानी ऐसी भी हुई इसके बाद कोई कहानी नहीं हुई
जो चाहत थे वह इंतजार में खत्म हुई जो मोहब्बत थी वह किसी और के नाम पर दफन Hui
अब मैं नहीं कहता क्या चाहिए मुझे क्या नहीं चाहिए क्योंकि जिसकी जरूरत थी वह तो किसी और की हुई
मुझे कोई शिकायत नहीं है उसेसे ना ही कोई चाहत है बस दुआ अभी यही करता हूं वह जहां भी है खुश रहे,
वैसे तो मोहब्बत के बारे में कहा है कितनों ने आज मैं भी एक बात कहता हूं
मैंने जो निभाया है अपने हिस्से में उसके बारे में मैं बस इतना ही कहता हूं
किसी को पपाकर पाना और ना पा कर भी उसका रहना यह भी तो एक मोहब्बत है ,
मैं कहता हूं मैं दीवाना हूं उसका उसने भी यह स्वीकार किया था
चलो में तो इस बात पर पीछे ही रह गया था उसने इस बारे में अपनी मां से भी बात किया था,
बात की थी उसकी मां ने मुझसे भी उसने भी मुझे स्वीकार लिया था,
फिर ना जाने कौन से बंधन आकर रोक दिए मुझे और उसको जो मजबूर कर गए उसे किसी और के साथ बिना मन के बंधन में
क्या यही संस्कार है क्या यही हम बच्चों का मां-बाप के प्रति प्यार है
मानता हूं हर बार मां-बाप ही हमें हर मुसीबत से उबरते हैं कोई तकलीफ आए तो वह अपनी जान तक देने में आ जाते हैं
परंतु बच्चों के जीवन का फैसला करते वक्त एक बार सहमत जो ले लेते तो हो सकता था कि हम भी एक दूसरे के करीब होते हैं पर कोई शिकायत नहीं है इसमें उसने भी अपनी बेटी होने का फर्ज निभाया है फिर मैं भी मान गया खामोशी से क्योंकि मुझे भी अपने पिता की जिम्मेदारियां को संभालने के लिए कंधों को मजबूत बनाना है बस यूं ही कुछ वक्त सपनों की तरह चलकर आंख खुलते ही गुजर गई मेरे मोहब्बत की दुनिया अब क्या कहूं उससे ज्यादा बस यही है मेरी मेरी मोहब्बत से कहानी जो कहानी रह गई आखरी बात भी ऐसी हुई कि जैसे कुछ वक्त bad फिर मुलाकात होगी......
© लब्ज के दो शब्द