...

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इंतेजार में रहती हूं
बहुत दिन हो गए
वो मिलने हमसे आए नहीं

लगता हैं प्यास उसका बुझ गए
अब मेरी उनको जरूरत रहा नहीं

फिर भी यकीन हैं हमें
कभी फुर्सत में उन्हें हम याद आते नहीं
ऐसा तो कभी होगा नहीं

जानती नहीं मैं वो आयेंगे नहीं कभी ऐसा बात भी तो नहीं तो
नदियों की तरह बहते हुए आयेंगे वो एक दिन
दिल में कुछ पाने की चाहत लेकर

कितना अजीब हैं उसको खबर हैं नहीं
उसके बिना कोई मेरा सहारा हैं नहीं

उसकी हिज्र में रात भर जागते हैं हम
और आता हैं वो किसी मौसम की तरहा

सालों में एक बार फागुन की तरहा
और मैं हर दिन इंतेजार मे रहती हूं
उस सूखे पेड़ की तरहा ,,,


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