#दूर
बार-बार परिचित बन
बार-बार अज़नबी बन
दूर बहुत हट जाता है
फ़ितरत तेरी रंगीली है
एक जगह न टिकती है
धीरज नहीं तुझमें इतना
सबर नहीं कर सकती है
पास नहीं आ सकता तू
दूर बहुत हट जाता है
अपनी दुश्वारियों का गुलाम
तू किसी का नहीं हो पाता है
न तो प्रेम कर सकता है
न तो प्रेम पा पाता है
तू दुश्मन अपने आप का है
कोई कुछ नहीं कर पाता है
नियति जो तूने बनाई अपनी
तू उसे भुगतता जाता है
तेरा कुछ नहीं कर सकता ख़ुदा भी
तू जैसा करता है वैसा पाता है
इंसानों में अज़ब तरह का इंसान है तू
अपने आप पर तनिक न शर्माता है
बहुत आज़ाद है तू,स्वतंत्र है तू
हम गुलामों को इसीलिए न भाता है ।
बार-बार अज़नबी बन
दूर बहुत हट जाता है
फ़ितरत तेरी रंगीली है
एक जगह न टिकती है
धीरज नहीं तुझमें इतना
सबर नहीं कर सकती है
पास नहीं आ सकता तू
दूर बहुत हट जाता है
अपनी दुश्वारियों का गुलाम
तू किसी का नहीं हो पाता है
न तो प्रेम कर सकता है
न तो प्रेम पा पाता है
तू दुश्मन अपने आप का है
कोई कुछ नहीं कर पाता है
नियति जो तूने बनाई अपनी
तू उसे भुगतता जाता है
तेरा कुछ नहीं कर सकता ख़ुदा भी
तू जैसा करता है वैसा पाता है
इंसानों में अज़ब तरह का इंसान है तू
अपने आप पर तनिक न शर्माता है
बहुत आज़ाद है तू,स्वतंत्र है तू
हम गुलामों को इसीलिए न भाता है ।