...

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आदत नहीं रही
हंसते हैं मगर खिल खिलाने की आदत नहीं रही
बे वजह खुद में मुस्कुराने की आदत नहीं रही।

ता उम्र है तेरी उल्फत में इंतज़ार मुझे
दहलीज में तक ते रह जाने की आदत नहीं रही।

समेटा है तेरे दर्द को अपने जीस्त में
याद कर के रोते रह जाने की आदत नहीं रही।

तेरे तसव्वुर में जीते हैं आज भी हम खुद में
तुझे महसूस करते रह जाने की आदत नहीं रही।

अब नाराज़ नहीं हुआ करते हम खुद से
अब खुद को मनाने की आदत नहीं रही।

गैर मुमकिन सा है कमरे का वीरान होना
तस्वीर किताबों में रह जाने की आदत नहीं रही।

© Roshan ara