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एक ठहराव जरूरी है
#WritcoPoemPrompt92
#firstpost

जीवन से आँगे भागने लगो जब
खुद को खुद से हारने लगो जब
तब थोड़ा विराम जरूरी है
एक ठेहराव जरूरी है

जब हो थकान अंतर मन की
न हो संज्ञान खुद मे खुद की
तब एक विराम जरूरी है
एक ठेहराव जरूरी है

काले बादल का कहर हो सर पर
ना आये नजर जब मंजिल पथ पर
तब किसी पेड़ की छाँव पर
एक ठहराव जरूरी है

जब हो गुमान मानुष-पन का
हो खुला पाट इर्श्या-मन का
तब कर्मा आभास जरूरी है
एक ठेराव जरूरी है

उठने लगे जब हाँथ बदन पर
वाँणी के हो उजले स्वर जब
एक विराम जरूरी है

एक ठहराव जरूरी है
जब हाट लगा हो नफरत का
जहाँ हो सौदा जज्बातों का
एक मुस्कां दुकान जरूरी है
एक ठहराव जरूरी है
एक ठहराव जरूरी है।।

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