ग़ज़ल...
सनम! तेरे दम से, जिए जा रहें हैं
मुहब्बत के ग़म से, जिए जा रहें हैं
जिंदा कहाँ हैं हम, तुमसे बिछड़के
मगर बस बेदम से, जिए जा रहें हैं
तेरी यादों में रोए कितना, न जाने
लिए नयन-नम से, जिए जा रहें हैं
यह जीना भी क्या, जीना है कोई
दूर होके सनम से, जिए जा रहें हैं
तेरे लौट आने की, एक आस लेके
'नीर' कई जनम से, जिए जा रहें हैं।
© @nirmohi_neer
मुहब्बत के ग़म से, जिए जा रहें हैं
जिंदा कहाँ हैं हम, तुमसे बिछड़के
मगर बस बेदम से, जिए जा रहें हैं
तेरी यादों में रोए कितना, न जाने
लिए नयन-नम से, जिए जा रहें हैं
यह जीना भी क्या, जीना है कोई
दूर होके सनम से, जिए जा रहें हैं
तेरे लौट आने की, एक आस लेके
'नीर' कई जनम से, जिए जा रहें हैं।
© @nirmohi_neer
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