...

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मुखाग्नि में हक दे दो ना..!!!
तुम कहँते हो मैं इस घर की
बेटी नही,घर का बेटा हूं...
तो बेटे बराबर का हक दे दो ना..!!
जायदाद में हिस्सा नही चाहती
मुझे उसके साथ "मुखाग्नि में
हिस्सा दे दो ना...!!!

मानती हूं कुछ "परम्पराओं पर
किसी का जोर नही,
पर बेटा ही क्यों वो "फर्ज निभाये,
हम इतने भी "कमजोर नही..!!!
तुमने ही तो "कांधे से कंधा
मिलाकर चलना सिखाया है,
तो चार कंधों में से एक कंधा भी
हम ना दे दे,
ये नियम क्यों बनाया है...?

वो" बेटा है _मैं" बेटी हू
पर "खून तो हमारा एक ही है,
तो "आत्मा को मुक्ति मिले
इसलिए बेटा ही क्यों...?
मुझमे क्या कमी है...?

तुम "कन्यादान करते हो,
मैंने कभी सवाल ना किया..!!!
मुझे पिंडदान का हक भी ना मिला,
तुम ही बताओ क्या ये सही हुआ...?

मुझे नही चाहिए" पैसा या हिस्सा,
बस मुझे भी वो" हक दे दो,
बेटी हू ना तेरी तो,
मुझे "मुक्ति देने का "कर्ज दे दो..!!!

मत बांधो मुझे इस "बंधन से,
की मेरे हाथों से "तेरी मुक्ति नही...
मानसिकता बदलो अपनी,
मैं "बेटी हु तो क्या हुआ..?
मुझे अंतिम संस्कार करने का
हक क्यों नही...?

© A.subhash

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