हम क्यों चुभते है?
खामोश रेहती हु तो अल्फ़ाज़ चुभते है,
दबे दबे से अनगिनत अरमान चुभते है।
हौसले टूट जाते है तो इरादे चुभते है,
हर कोई बेगाना...
दबे दबे से अनगिनत अरमान चुभते है।
हौसले टूट जाते है तो इरादे चुभते है,
हर कोई बेगाना...