...

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आख़िर कब तक
आख़िर कब तक
ये सवालों के बवंडर
मेरे मन में उठते रहेंगे।
आखिर कब तक
मानवता से डगमगाता हर कदम
मेरे लहु को खौलाता रहेगा।
आखिर कब तक
इंसान अपने ही अंदर की बुराइयों से
मुह की खाता रहेगा।
आखिर कब तक
लोगे झूठ का सहारा
और छुपोगे बेईमानी की आँड. में,
सच्चाई को भेद सके
इतना दम नहीं तुम्हारे बाँड. में।
आखिर कब तक
सच को झुठलाओगे
ढोंग रचा- रचाकर
खुद को ही मूर्ख बनाओगे।
आखिर एक दिन तो वो आएगा
जब तुझको सब समझ आएगा
ये झूठ, ये धोखेबाज़ी
सब छोड़ देगे तेरा साथ,
बैठा रह जाएगा अकेला
धरे हाथ पे हाथ।
जब तू गिर रहा होगा
खुद की ही नज़रों में ,
तब तुझे कौन बचाएगा ?
वक्त है
सम्हल जा
इंसानियत का रास्ता ही
तेरे काम आएगा ।।

© VSAK47