आख़िर कब तक
आख़िर कब तक
ये सवालों के बवंडर
मेरे मन में उठते रहेंगे।
आखिर कब तक
मानवता से डगमगाता हर कदम
मेरे लहु को खौलाता रहेगा।
आखिर कब तक
इंसान अपने ही अंदर की बुराइयों से
मुह की खाता रहेगा।
आखिर कब तक
लोगे झूठ का सहारा
और छुपोगे बेईमानी की आँड....
ये सवालों के बवंडर
मेरे मन में उठते रहेंगे।
आखिर कब तक
मानवता से डगमगाता हर कदम
मेरे लहु को खौलाता रहेगा।
आखिर कब तक
इंसान अपने ही अंदर की बुराइयों से
मुह की खाता रहेगा।
आखिर कब तक
लोगे झूठ का सहारा
और छुपोगे बेईमानी की आँड....