...

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waqt
बैठे बैठे आज एक सवाल आया,
कितनी ज़िन्दगी जी मैने इतने बीते हुवे वक़्त में।
देखा मूड कर तो ज़िन्दगी तो जीनी रही गई,
अपनी जिममेदारियों का बोझ उठते हुवे।
मेरी ज़िन्दगी में साल तो बढ़े,
पर सालो में ज़िन्दगी बढ़ाना भूल गई।
अपनों के साथ वक़्त बिताना रह गया,
प्यार से प्यार को बुलाना भूल गई,
ज़िन्दगी में इतनी वस्थ हुवीं के,
बस जीना भूल गई।
बस आजसे जिमेदारिया तो पूरी करुगी,
पर अपनों को वक़्त बी दुगी,
मेरे प्यार जीभर के प्यार करुगी,
कुछ वक़्त अपने लिए बी निकालुगी,
आज से फिर से ज़िन्दगी अपनी जी लूंगी।