...

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क्यूंकि लड़की थी मैं
हारी नही हूँ मैं... बस मेरी रूह ने दम तोड़ दिया है
भरोसा था जिनपर ,आज उन अपनो ने मुझसे मुँह मोड़ लिया है
कुसूर क्या था मेरा ,पूछती हूँ उनसे
जन्म से ही कोमल थी,थे आँखों मे सपने
पर आंखे नही मूंदी मैने
बस अब उम्मीद खो दी है...
प्यार तो मैं भी करती थी, जान था कोई मेरा
पर ये जहान छोड़ कर चली जा, आज उसी जान ने कह दिया है
साथ जन्मों तक का वादा करना था जिसे आज उसने बीच मजधार में ही अकेला कर दिया है
शादी थी मेरी कल, सजाए बड़े अरमान थे
मेहंदी लगाई थी ,खुले मेरे बाल थे
नाखूनों का शौख था ,रंगे मैंने हाथ थे
बस रात का अंधेरा था ...और लड़की होना पाप था
आत्मा तो उसी वक़्त मर चुकी थी,
आज...यह शरीर भी खुदगर्ज़ हो गया है ...अपनी ही छुवन से ...बिलख कर चीख उठता है...
दिलासा नही चाहिए,...क्या इंसाफ दिलवाओगे
गलती जिन्होंने की थी ...उन जानवर दरिंदो की गुनाह की सुनवाई चाहिए
मुझे मेरा न्याय चाहिए...
अब... आँसू बहाने की कोई वजह नही बचा
दूर रो रही है आज माँ भी ...न कोई गोद है सर रखने को
बेजान सी हो गयी है आज भाइयों की भी बाहें ...गले लगाने को
बहने भी अब मायूस सी है ...न कोई शब्द बचा है कहने को...
पर...
हारी नही हूँ मैं...
बस थक सी गई हूँ
थक सी गई हूँ...
इसीलिये... बहुत दूर जा रही हूँ
एक लम्बा सफर तय करना है ....सुकून की तलाश में...
पर अब और, मुँह नही छुपाउंगी मैं.....जाउंगी ...पर सर उठाकर!!
कमज़ोर नही हूँ मैं...पर इस खोखले समाज मे आज कदर नही हमारे सम्मान की....
क्यूंकि लड़की थी मैं!!!...इसलिए मैं इन बुज़दिलों से भी सहम गई...
और यूही आस लगाते लगाते...
रोते हुए मर गई
रोते हुए मर गई...