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कूछ अनकही सी ख्वाईसें..…..
कभी खुद को सजना‌ खुद को खुद के लिए तेयार करना‌ मुझे बहुत अच्छा लगता है,
बारिश की बूंदों में भीग कर उसमें खो जाना,
कभी कभी खुद को देर तक नीहारना,
खुद कि घूगंर की आवाज से पेरो की ताल मीलाना,
हाथों में मेहंदी की लकीरें खींचना,
कभी जीन्स टी-शर्ट तो कभी सारी या फिर साल्वार कमीज में सीमट जाना,
कभी मन उदास होने पर खाना बनाने का बाहाना ढूंढ लेना मन को सुकून से भर देती है,

कभी मन पसंद कीताब की पन्नो पे खूद को ढूंढना ,
तो कभी शाम कि सर्दि में नूकड की चाय पीना,
कभी सुबह छत पर खुली हवा में खड़े होकर सुरज का इतंजार करना,
दरवाजा से आने वाली धुप में उस छोटी छोटी कणिकाओं को देखना,
तो कभी दीन भर थकान के बाद आरम से बेठ कर चाय की चुस्की लेना,

एसी बहुत सी बातें हैं जो दिखने में बचपना जरुर लगता है पर दील को सकुन बहुत देती हैं ,जींदगी में जान लाती है.....