...

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कीमत आजादी की ....
जाने कितनी कुर्बानी दे कर
आजादी को पाया है
तब जाकर कहीं हमने
ये तिरंगा फहराया है
माथे के सिंदूर उजड़ गए
राखी के बंधन चटक गए
जाने कितने ही वीर अपनी भरी जवानी में
हंसते हंसते फांसी पर लटक गए
समझना होगा इस पीढ़ी को कि
क्या खोकर क्या पाया है
तब जाकर कहीं हमने
ये तिरंगा फहराया है
खून से लथपथ दिल के टुकड़े का
"शव"जब मां के आंगन में आया है
बूढ़े पिता के कांधों ने
कैसे बेटे का बोझ उठाया है
मत पूछो उन मासूमों ने "बिना पिता के "
अपना बचपन कैसे बिताया है
तब जाके कहीं...