...

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सूरमा
जिस-जिसको हुआ मग स्वशौर्य के प्रसार का तिस-तिसको सिखाया नत होकर विलपना
जब-जब हो पराक्रम की बातें समर में
फिर गिनना किसी को पराया क्या अपना

ना मांगी थी मिन्नत न तोड़ा था धीरज
बस हर इक कदम पर थी वारों की बारिश
कुछ वादों की बरसात व अपनों की कोशिश
ने नम कर दिए आंखों शबनम टपकना

फिर यादें कतल की छा जाती अचानक
उठ खड़ा तिलमिलाया ले हाथों में खंजर
वो भूला कुछ अच्छा कुछ ऐबों जहन में
रख लड़ता रहा सर कफन था तुमीं ने



© शैलेंद्र मिश्र 'शाश्वत'