...

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मुझे सुनने वाला कोई नहीं....
आए दिन बवाल नया होता है,
रोज़ एक नया सवाल होता है,
कौनसी वो शाम है के जब आंख रोई नहीं,
मुझे समझने वाला कोई नहीं।
कहते हैं पढ़ लिखे जाओ सशक्त हो जाओगे,
हमने इस सच को झूठ से भी झूठा होते देखा है,
कुसूर मेरा सिर्फ इतना है के मैं शिक्षक हूँ,
ज़लालत सहना ही अब हमारा पेशा है।
जिसे देखो हम पर ही हावी है,
हमारा पक्ष रखने वाला कोई नहीं,
मुझे समझने वाला कोई नहीं।
हूंं उम्र के उस मुकाम पर जहाँ महसूस बहुत होता है,
लेकिन किया कुछ नहीं जाता,
कैसे कहूँ इस घुटन भरे माहौल में अब और जीया नहीं जाता,
दुनिया मस्त मगन है शिक्षक का कोई नहीं,
कौनसी ऐसी शाम है जब मैं रोई नहीं।
वेतन के नाम पे मूँगफलीया समेट कर लाती हूँ,
मगर काम का ब्योरा पूछो तो बयां नहीं कर पाती हूँ।
इतने पर भी मुझे अपने तरीके से काम करने की आज़ादी नहीं,
चीख़ ओ पुकार करती हूँ सुन ने वाला कोई नहीं,
कौनसी ऐसी शाम है जब मैं रोई नहीं।
जिनको शिक्षा लेनी है वो आज़ाद पंछी हैं,
मैं शिक्षा देने वाली सब की ग़ुलाम हूँ,
बहुत से भी ज़्यादा आज परेशान हूँ।
कलम उठाई है इसीलिए के दर्द बयानी इस से अच्छी कोई नहीं,
ऐसी कोई शाम नहीं जब मैं रोई नहीं।
Ek shikshak ki vyatha...bardasht kijiyega🙏
© Haniya kaur