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मुझे उस हीर की रांझा बनना है
ना शेर ना शायरी ना ग़ज़ल बनना है
मुझे तो आँखों का काजल बनना है
जो लिपट जाए आकर तेरी रूह से
मुझे वो हयात का आँचल बनना है

ना मिट्टी ना आग ना पानी बनना है
मुझे तेरे किताब की कहानी बनना है
जो सिर्फ ख्वाबों में आकर मिलती हो
मुझे ऐसा कोरा जवानी बनना है

ना सुबह ना शाम ना रात बनना है
मुझे तो आखरी मुलाकात बनना है
वो बून्द जो जिस्म की प्यास ना बुझाये
मुझे वो अधूरी बरसात बनना है

ना बाग़ ना कलियां ना खुश्बू बनना है
मुझे तेरे जिस्म का लहू बनना है
जो ख़्वाब सिरहाने से रोज गुजरती है
मुझे उसके अक्स के हु-बहु बनना है

ना सुई ना तलवार ना तीर बनना है
मुझे तेरे हाथो की लकीर बनना है
जिसकी हर सांस मेरी सांसो से जुड़ी हो
मुझे उस हीर की रांझा बनना है
© ShayarShubh Writes