...

40 views

एक नई सुबह
सोचती हु न जाने कब आएगी वो सुबह नई
लगता है वो मिलो दूर छुपी कही

हर रात इसी उम्मीद में सोती की अगली सुबह कुछ नए रंग लाएगी
सोचती की कल सूरज की वो पहेली किरण जब मुंह पे पड़ेगी तो मुरझाई सी ज़िंदगी कमल के फूल के समान खिल जाएगी

फिर ख्याल आता है काश मैं भी तितली होती
मैं भी कभी इधर बैठती कभी उधर
सुबह के वो सुंदर नज़ारे देख पाती

फिर सोचती की तितली से भी अधिक आनंद पर्वतो को आता होगा
फिर पर्वतों पर तरस आ जाता है सोचती ना जाने उन्होंने इंसानों के कारण कितना सहा होगा

~©Divs~