...

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कीमत
और कितनी कीमत चुकाऊं,
मैं अपनी गलतियों की।
किसी का दिल रखा,
किसी की ख्वाहिश पूरी की।
किसी का वचन निभाया,
किसी दुखी दिल को बहलाया।
किसी की मजबूरियों को समझा,
किसी की लाचारी समझी।
किसी का मान रखा,
सभी का सम्मान किया।
सभी को खुश करना चाहा,
सभी को संतुष्ट करना चाहा।
सब मे अपनी अपनी सोच बना ली,
सबने अपनी अपनी राह पकड़ ली।
सभी ने अपने मन की कर ली
मेरे मन की किसी ने सुध न ली।
जो करता है वही मरता है,
औरों की उंगलियों की दिशा।बनता है।
समझदार बनाने निकले थे सब को,
सब ने ही नासमझ कह दिया हमको।
कुछ कहा जब भी हमने,
गुनहगार तो हम ही बनें।
और कितनी कीमत चुकाऊं,
मैं अपनी गलतियों की।
संजीव बल्लाल ४/५/२०२३
© BALLAL S