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बहती यादें
किस्तों में ये यादें क्यों?
बहता क्यों नहीं ये पानी सा
किसी पेड़ सी जड़ सा क्यों?
किसी पहाड़ सा अडिग क्यूं है?
गहरे कर देती है घाव मेरे..
लौटती ये घड़ी के काटो सी
केसे तोड़ू जंजीरें इसकी
समझ नही आती है
छुपाऊ कैसे घाव मेरे
अक्स दिखते अभी भी मेरी आखों में ..
तोड़ू जंजीरें केसे यादों की?
बिखरा मैं खुद इन यादों में मैं
चाहता हूं तोड़ना इन यादों को
आज़ाद उड़ना चाहता हूं
खौंफ सा लगता है उड़नें में आजकल
गिर के ना संभलने का डर सा लगता है
पुछूं हर रात खुदसे हर रात में
संभला हूं या नहीं मैं?
केसे समझाऊं खुदको ये
चांद दूर से ही सुहाना दिखता है
© improvinglyincomplete
बहता क्यों नहीं ये पानी सा
किसी पेड़ सी जड़ सा क्यों?
किसी पहाड़ सा अडिग क्यूं है?
गहरे कर देती है घाव मेरे..
लौटती ये घड़ी के काटो सी
केसे तोड़ू जंजीरें इसकी
समझ नही आती है
छुपाऊ कैसे घाव मेरे
अक्स दिखते अभी भी मेरी आखों में ..
तोड़ू जंजीरें केसे यादों की?
बिखरा मैं खुद इन यादों में मैं
चाहता हूं तोड़ना इन यादों को
आज़ाद उड़ना चाहता हूं
खौंफ सा लगता है उड़नें में आजकल
गिर के ना संभलने का डर सा लगता है
पुछूं हर रात खुदसे हर रात में
संभला हूं या नहीं मैं?
केसे समझाऊं खुदको ये
चांद दूर से ही सुहाना दिखता है
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