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तुम किताब मत बनना
तुम किताब मत बनना

मैं शब्द बन जाऊँगी
पर तुम किताब मत बनना,
क्योंकि ऑनलाइन जमाने में
किताबें खुलतीं बहुत कम हैं...

तुम बनना गूगल
ताकि,ना लग पाए दीमक
तुम्हारे पन्नों पर,
पड़े हुए एक कोने में,

भले ही लग जाने दो तुम
लोगों के दिमाग में दीमक
बनी हुई खाकर,
पकी-पकाई खिचड़ी इन्टरनेट की...

बना लेने दो दूरियां किताबों से,
खोखले ज्ञान से भर लेने दो
अपने जीवन की तिजोरी
जिसकी चाबी साइबर ठगों के पास गिरवी रखी हो...

पर तुम गूगल ही बनना
किताब मत बनना...
क्योंकि फैसन परस्त लोगोंको किताबें पढ़ना
ओल्ड फैशन लगता है...
अभिव्यक्ति -सोनाली तिवारी (दीपशिखा)
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