...

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वो शख़्स बहुत बदल रहा है
वो शख़्स बहुत बदल रहा है
ख़ुद में ख़ुद ही ढल रहा है
इश्क़ जो किया था उसने कभी
उस आग में धीमे धीमे जल रहा है
मोहब्बत, बेकली बेरुख़ी का सबब
अन्दर ही अन्दर उसे खल रहा है
थम सी गयीं हैं साँसें उसकी अब
बेबसी का मंज़र मग़र दिल में पल रहा है
यूँ तो जी रहा है वो नीम-जाँ अब भी लेकिन
विरानियों का सफ़र उसके अन्दर चल रहा है।
© Gaurav J "वैरागी"
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