...

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मैंने पूछा चांद से
मैंने पूछा चांद से यह रात क्यों घनघोर है
वह भी हंसकर कह गया यह आपका ही शोर है
मैं सो गया मैंने देखा क्या मेरे ख्वाब में कोई और है
मैंरी चाहते कुछ और थी मेरा रास्ता कुछ और है
मैंने पूछा चांद से यह रात क्यों घनघोर है
वह भी हंसकर कह गया यह आपका ही शोर है
मैं भला फिर कहता क्या यह बेवफाई का दौर है
मैंने झांका अपने अंदर फिर पूछ लिया उस शोर से
उसने कह दिया वह चली गई जो कहती थी
हम बंधे हुए हैं एक डोर से वह मिल गई
किसी और से और आग लगा दी उस डोर मैं
मैं देखता रहा उसे गौर से फिर ना मिली वो किसी मोड़ पे
मैं था गलत में समझ गया ना प्यार है इस दौर में
फिर मैं भी सब में मिल गया और खो गया इस शोर में
मैंने पूछा चांद से यह रात क्यों घनघोर है
वह भी हंसकर कह दिया ये आपका ही तो शोर है
© Rohit kumar Tiwari