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ग़ज़ल
एक-दूजे की दिल से इज़्ज़त कर।
दिल ये कहता है बस मुहब्बत कर।
ये दिखावे, ये ढोंग छोड़ भी दे,
रब की दिल से कभी इबादत कर।
फ़र्क़ करते हैं जो इंसानों में,
उन समाजों से तू बग़ावत कर।
हो न पाए भले ख़ुशी में शरीक़,
लाज़िमी है ग़मों में शिरक़त कर।
भूखे पेटों को मिल सके रोटी,
बांट के खाने की तू आदत कर।
© इन्दु
दिल ये कहता है बस मुहब्बत कर।
ये दिखावे, ये ढोंग छोड़ भी दे,
रब की दिल से कभी इबादत कर।
फ़र्क़ करते हैं जो इंसानों में,
उन समाजों से तू बग़ावत कर।
हो न पाए भले ख़ुशी में शरीक़,
लाज़िमी है ग़मों में शिरक़त कर।
भूखे पेटों को मिल सके रोटी,
बांट के खाने की तू आदत कर।
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