ईमान
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
सूखे अश्कों की भी एक कहानी है;
तपती धूप में निढ़ाल वृद्ध वो बैठा है,
पल भर की सांसो का हिसाब कर...
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
सूखे अश्कों की भी एक कहानी है;
तपती धूप में निढ़ाल वृद्ध वो बैठा है,
पल भर की सांसो का हिसाब कर...