...

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ईमान
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
सूखे अश्कों की भी एक कहानी है;
तपती धूप में निढ़ाल वृद्ध वो बैठा है,
पल भर की सांसो का हिसाब कर रहा है;
वक़्त कहाँ अभी उसका है
माथे पर सजी बूंदों को किस्सा अभी बाकी है;
पेट की आग मिटाने को, देश को अन्न देने को
माटी का कर्ज़ अभी भी अधूरा है;
दादा के वचन का सम्मान रखना है,
गिरवी मकां है, इमां अभी भी जिंदा है;
नेता नहीं हम साहब, किसान है,
माटी नहीं ये, देश ये अपना इमान है.
© LivingSpirit