...

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क्या? क्यों?
घड़ी में बारह बज रहा है, अजीब सा अंधेरा छाया है,
किसी के घर किलकारी तो किसी के घर मातम का सन्नाटा छाया है। क्या यही दुनिया है?
किसी के घर बोरियो से लदी सब्जियां तो किसी के घर तंगी छाया है, कोई बीमार तो कोई बीमारी से बच के आया है। क्या यही दुनिया है?
कोई जीम में पसीना बहा रहा, तो कोई इटो के वजन से लड़खड़ा रहा है। कोई अपना प्यार कलम-ए-श्यारी लिखा जा रहा है, कोई जुबां से हाल-ए-दर्द बता रहा है।
क्या यही दुनिया है?
किसी के पास पैसा होते हुए भी परेशान है कोई सूखी रोटी खा कर सो जा रहा है, कोई खुदा-ए-मंज़िल मन्दिर बता रहा
कोई गरीब बाहर मांग रहा, कोई अमीर अंदर मांग रहा।
क्या यही दुनिया है?
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