...

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जैसा भी है मेरा है
वो जैसा भी है मेरा है
मेरी अंधेरी रातों का
उगता हुआ सवेरा है
थोड़ा कठोर है बहुत कठिन है
पर दिल का बड़ा सुनहरा है
बड़ी बड़ी आंखें उसकी
और हंसता हुआ चेहरा है
देखे जब भी दिल को चुरा ले
मानो कोई शातिर लुटेरा है
ज्ञान बांटे सबको ऐसे
जैसे सरसूती का प्यारा है
बोली बोले जग फंस जाए
बातों का जाल घनेरा है
मुझे नचाता इशारों पर यूं
मुझे नागिन खुद को कहे सपेरा है
रोज़ चिढ़ाए प्यार जताए
मालिक बन बैठा मेरा है
दिखता है रात्रि के शशि की भांति
वो प्रेम का सागर गहरा है
हो चुका फलक में रिश्ता पक्का
ये प्रेम का बंधन दोहरा है
मिलोगे इक रोज़ मुझे तभी
समय हमारे लिए ठहरा है
दूर है मेरी नजरों से पर
दिल में उसकी यादों का बसेरा है
तू जहां रहे बस मेरा रहे
ये दिल भी तो कहे सिर्फ तेरा है.........


© ढलती_साँझ