...

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कौन निखरता है यहाँ
कौन निखरता है यहाँ ख़ुद को दफ़न करके
बिखर जाता है आदमी ख़ुद को दफ़न करके ।

ज़िंदगी नहीं गुज़रती कभी अपनी मर्ज़ी से यहाँ
खुश होले मगर कुछ तो मनमर्ज़ियाँ करके ।

छुपा कर ही ज़माने से धता बता ज़माने को
जीने नहीं देती दुनिया यहाँ खुदगर्ज़ियाँ करके ।

अपने रास्ते पर चलना ही सही होता है
रास्ता सही भी मिलता है यहाँ भटक करके ।