क्योंकि
आज भी पानी की लहरें किनारे को छू जाती हैं,
क्योंकि रेत को कभी तो पानी में बहना ही था ,
इस ओर गंगा में या उस ओर यमुना में,
चाहकर या अनचाहे,
रेत को आज भी लहरों में बह जाना ही था।
आज भी सूरज समंदर के उस पार से निकल आया,
क्योंकि अंधेरे का अंत तो आना ही था,
आज या कल रात को जाना ही...
क्योंकि रेत को कभी तो पानी में बहना ही था ,
इस ओर गंगा में या उस ओर यमुना में,
चाहकर या अनचाहे,
रेत को आज भी लहरों में बह जाना ही था।
आज भी सूरज समंदर के उस पार से निकल आया,
क्योंकि अंधेरे का अंत तो आना ही था,
आज या कल रात को जाना ही...