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ग़ज़ल
इश्क़ का जब भी फिर ख़याल आया,
याद तुम आए और मलाल आया।
सब हैं महफ़िल के उसके दीवाने,
हुस्न उसपे जो बाकमाल आया।
जब भी देखा है उसकी आंखों में,
दिल में मैखाने का ख़याल आया।
दोष नीयत का सब नहीं मेरे,
तन में उनके भी है जमाल आया।
खैरियत ही तो उनसे पूछी है,
सबकी आंखों में इक सवाल आया।
© शैलशायरी
याद तुम आए और मलाल आया।
सब हैं महफ़िल के उसके दीवाने,
हुस्न उसपे जो बाकमाल आया।
जब भी देखा है उसकी आंखों में,
दिल में मैखाने का ख़याल आया।
दोष नीयत का सब नहीं मेरे,
तन में उनके भी है जमाल आया।
खैरियत ही तो उनसे पूछी है,
सबकी आंखों में इक सवाल आया।
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