...

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मैं अब दरख़्त होने लगा हूँ…
मैं दरख़्त होने लगा हूँ …

जब से मैंने सीखा है
किसी फलों से लदे
दरख़्त की तरह झुकना

तब से लोग
आने लगे हैं मेरे जानिब
परिंदों की तरह

मैं अब फैला लेता हूँ
अपनी बाँहें
और
भर लेता हूँ उन्हें
अपने आग़ोश में किसी दोस्त की तरह

और बाँट लेता हूँ
उनके सुख दुख कुछ पलों के लिए

मैं अब
आहत भी नहीं होता
किसी नादान के फैंके हुए पत्थर से
ना ही मेरे ज़हन में उफनता है अब
किसी के प्रति आक्रोश का दरिया

मैं अब
बदलने लगा हूँ समय के साथ
और मारने लगा हूँ अपनी संवेदनाओं को

शायद
मैं अब चेतन से जड होने लगा हूँ

शायद मैं भी अब दरख़्त होने लगा हूँ….

#हसरतों_के_दाग
© theglassmates_quote