ग़ज़ल
2122-1212-22/112
अपनी हस्ती को ही मिटाऊँगा
बाद मुद्दत के लौट आऊँगा
तुम सनम इंतिज़ार करना बस
मैं तुम्हें तुम ही से चुराऊँगा
बे-वफ़ाई का दाग़ गर दोगे
दिल हूँ शीशे का टूट...
अपनी हस्ती को ही मिटाऊँगा
बाद मुद्दत के लौट आऊँगा
तुम सनम इंतिज़ार करना बस
मैं तुम्हें तुम ही से चुराऊँगा
बे-वफ़ाई का दाग़ गर दोगे
दिल हूँ शीशे का टूट...