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गणेशा की कहानी


कैलाश पर्वत पर, जहां ठंडी छाई होती है,
छोटे से कुटिये में, एक किस्सा विराजता है।
वहां रहते हैं शिव, पार्वती और पुत्र कुमार,
शिव धरते हैं जगह-जगह का सफर, रात को लौटते हैं बार-बार।

पार्वती अकेली रहती, उसकी अकेलापन सताता,
वह चाहती थी एक पुत्र, जो रहे हमेशा पास हमेशा।
सप्फ़रन के पेस्ट की बूँद और ध्यान बंद किया आँखों का खिलवाड़,
और वहां था एक प्यारा सा बच्चा, पास आया उसकी बाद।

लड़का माँ के चरणों में गिरा, "आशीर्वाद दो, माँ," वह कहा,
पार्वती ने उसे गले लगाया, प्यार से उसका दिल बहलाया।
माँ की चाहत का बेटा, उसकी हर इच्छा को पूरा किया,
वह माँ के पास ही रहता, उसका साथ बिलकुल बन गया।

वह बेटा देखभाल करता, उसके पीछे हरदम चलता,
जब पार्वती व्यस्त होती, तो द्वार पर वह सुरक्षा करता।
अज्ञात किसी को न देने देता घर के अंदर जाने,
पार्वती की सुरक्षा में वह था हमेशा बाणे।

दिन बीत गए, एक शाम शिव घर लौटे,
हैरान हो गए वे, देखकर ऐसे दृश्य को जो आवे।
"तुम इस घर में नहीं जा सकते, जो मेरी माँ का है," बोला बच्चा सम्मान,
शिव ने उठाया त्रिशूल, छोटे को किया बाधित, फिर घर में बढ़े बगीचा हो गया उसका रास्ता।

तब पार्वती निकली बाहर, उसके पति का स्वागत करने के...