...

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शाम ढल रही है
शाम ढल रही है

गुमशुदा बैठा सुबह से,खोज मेरी हो रही ।
चिंता बैठी मस्तक पे, दस्तक अपनी दे रही।

अधुरी कहानी अधुरी बातें अधुरा रहा स्वपन।
सपने बड़ी उम्मीदों के, पर रोज मैं होता दफन।

जिंदगी के लम्हों की किताब अधुरी रह गई।
हर मोड़ के हर कांटों की वो बात अधुरी रह गई।

माता पिता के दर्द पर मरहम लगा न पाया।
खुद का भी कोई रहस्य था उसे जता न पाया।

© जितेन्द्र कुमार 'सरकार'