असल में
तुम्हें पता है सब..
क्यों दिखा रहे हो तुम..
जो तुम हो नहीं असल में...।
तुम कोई राम नहीं..
तुम कोई भगवान नहीं...
तारीफ़ खुद की क्यों किए जा रहे हो...
आखिर साबित क्या करना चाहते हो...
जो है ही नहीं असल में...।
तुम मददगार तो नहीं....
तुम साझेदार तो नहीं....
तुम भड़क जाओगे पल में...
फिर क्यों उमीद लगवा रहे हो...
जो अच्छे हो नहीं असल में,...
क्यों तड़पते हो उसके लिए...
जो है ही नहीं....
क्यों कदर करते नहीं हो उसकी...
जो मौजूद है असल में।
क्यों दिखा रहे हो तुम..
जो तुम हो नहीं असल में...।
तुम कोई राम नहीं..
तुम कोई भगवान नहीं...
तारीफ़ खुद की क्यों किए जा रहे हो...
आखिर साबित क्या करना चाहते हो...
जो है ही नहीं असल में...।
तुम मददगार तो नहीं....
तुम साझेदार तो नहीं....
तुम भड़क जाओगे पल में...
फिर क्यों उमीद लगवा रहे हो...
जो अच्छे हो नहीं असल में,...
क्यों तड़पते हो उसके लिए...
जो है ही नहीं....
क्यों कदर करते नहीं हो उसकी...
जो मौजूद है असल में।