...

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जिंदगी गुलजार है।
यु हर रोज हर पल,
तुकडो में तुटना,
फिर उनही तुकडो को
समेंटकर खुद्द को
एक नये साचे में ढालना।
अपने जखम खुद्द ही कुरेदना,
फिर अपने ही हातों से,
उनकी मलमपट्टी करना।
टपकने भी लगे अगर,
शबनम की बुंदे,
तोअपने ही इस दुपट्टे की गाठ मे
उन्हे भी बांध लेना।
बस कुछ ऐसे ही
गुजर रही है जिंदगी।
अब तो आदत बन चुकी है
एन तुकडो की।
बस एक दिन मोहब्बतभी
हो जाये इनसे।
शायद यकीन हो जाये,
जिंदगी गुलजार है।